नई दिल्ली्, कविलाश मिश्र 29 फरवरी को पेश होने वाला वर्ष 2016-17 के केंद्रीय बजट कैसा होगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन समय-समय पर वित्तमंत्री अरूण जेटली की तरफ से देश की आर्थिक स्थिति को लेकर जो तस्वीयर पेश की जाती रही है उसमें वर्ष 2016-17 के बजट अनुमानों को तो ढूंढा ही जा सकता है। हालांकि, इस बार वित्तस मंत्रालय की तरफ से बजट को लेकर समाज के सभी वर्गों से सुझाव मांगे गए हैं। जाहिर हैं कि वित्ता मंत्रालय माइक्रो लेवल ( सुक्ष्मे स्त र) पर जाकर बजट बनाने से पूर्व देश की वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, संगठनात्मुक, व्यातपारात्मएक, व्यावसायिक, कारोबारिक, रोजगाररात्मजक सहित अन्य् कई पहलुओं की बारिकी से जांच करेगा। इसके बाद ही वर्ष 2016-17 की बजट की रूप रेखा तैयार हो पाएगी। इसी कार्य में पूरा वित्तीशय अमला जुटा हुआ है। लेकिन, इन सबके बीच विश्व की आर्थिक स्थिति को देखते हुए विश्व परिदृष्य को भी ध्या2न में रखना आवश्य क होगा। विश्वि की आर्थिक अर्थव्य्वस्थार का प्रभाव से भारत भी बच नहीं सकता है। 21वीं शताब्दी6 के शुरू के 16 वर्ष के दौरान ही विश्वै दूसरी आर्थिक मंदी की कगार पर खडा नजर आ रहा है। अर्थशास्त्री इस मंदी को भी वर्ष 2008 जैसा ही मान रहे हैं। 2008 के मंदी ने पूरे विश्वा को अपनी चपेट में लिया था। तब से यह कमोबेश जारी ही है। कभी रोम संकट सामने आता है तो कभी पूरा यूरोप, तो कभी यूरो संकट विश्वी अर्थव्य वस्था को प्रभावित करता दिखता रहा है। फ्रांस ने वित्तीभय अपातकाल की घोषणा कर डाली है। सामरिक और आर्थिक दृष्टि से विश्व की अगुवाई करने वाला देश अमेरिका की स्थिति कोई सही नहीं है। इस पर से तुर्रा यह कि चीन की अर्थव्य वस्थाि भी चरमराती नजर आ रही है। पिछले छह माह में चीन को अपनी मुद्रा का अवमुल्यरन कई बार करना पडा है। इस बात से भ्ाी इंकार नहीं किया जा सकता है कि भविष्यो में और भी अवमुलयन हो सकते है। वित्तामंत्री श्री अरूण जेटली भी कह चुके है कि इस समय वैश्विक अर्थव्यवस्था चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है और इसका प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। उन्होंने विश्व बैंक द्वारा वैश्विक विकास दर के अनुमान को घटाकर 2.9 फीसदी किए जाने का जिक्र किया। उन्हों ने इस बात का जिक्र किया कि विश्वस की परस्पर जुड़ी हुई अर्थव्यवस्था में ऐसी अनेक चुनौतियों का प्रभाव एक-दूसरे पर भी पड़ता है। इसके कारण चीन में जो हो रहा है और तेल मूल्य में जो हो रहा है, उसका प्रभाव हमारे बाजार पर भी पड़ता है। जब मूल्यों में कमी आती है तो इससे हमारी आय भी प्रभावित होती है। शायद यह वैश्विबक स्थिति का परिणाम है कि वित्त वर्ष के लिए सरकार ने आर्थिक विकास का लक्ष्य 8.1 से 8;5 प्रतिशत से घटाकर सात से 7.5 प्रतिशत के बीच कर दिया है। हां, एक बार सरकार के पक्ष में है कि वैश्वियक स्थिति पर क्रुड ऑयल की दरों में कमी आने से भारत को लाभ मिला है। भारत , अपने कुल खपत का 80 फीसदी तेल विदेश से मंगाता है। भाजपा नीत राजग सरकार अपने कार्यकाल के दूसरे पूर्ण बजट की तैयारियों में जुटी है। अगर 2014 के अंतरिम बजट को गिना जाए तो यह तीसरा बजट होगा। बजट में आर्थिक वृद्धि को गति देने के उपायों पर विशेष जोर दिया जा सकता है। वित्त मंत्री श्री जेटली की चिंता ग्रामीण आय एवं मांग को पुनर्जीवित करनाे को लेकर भी है। वे दावोस में इस बात का उल्ले ख कर चुके है। ऐसे में लगता है, आगामी बजट में इस पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। यदि भारत वैश्विक आर्थिक मंदी से होने वाले नुकसान को कम करना चाहता है तो ग्रामीण मांग को बढ़ाना बेहद महत्वपूर्ण है। इस सबके बीच वित्तमंत्री अर्थव्यतवस्थाण को लेकर सरकार का इरादा स्पदष्टज कर चुके है। वे पहले ही यह संकेत दे चुके है कि सरकार एकनिष्ठ होकर आर्थिक सुधार जारी रखेगी। श्री जेटली ने स्पाष्टक कहा कि सरकार सुधार जारी रखेगी। हम दिशा से भटक नहीं सकते और आज की परिस्थिति में हर राज्य को सहयोग करना होगा। पिछले दिनों वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के सम्मेलन में सरकार की मंशा को उजागर किया था। उन्होंरने कहा था कि बजट उच्च विकास दर हासिल करने के लिए आर्थिक सुधारों पर केन्द्रित रहेगा। जेटली की बजट टीम में मुख्यरूप से सिन्हा के अलावा मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यम् और नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविन्द पनगढिय़ा हैं। इसके अलावा वित्त सचिव रतन वाटल, राजस्व सचिव हँसमुख अधिया और आर्थिक मामले विभाग के सचिव शक्तिकांता दास शामिल हैं। बजट तैयारियों के सिलिसले में रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन राजन कह चुके है कि वित्तीय मजबूती के ढर्रे पर कड़ाई से अड़े रहने की जरूरत है। साथ ही, उन्होंरने सलाह दी है कि व्यय की जाने वाली राशि के बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जाए। नवंबर महीने के औद्योगिक उत्पादन का ताजा आंकड़े में 3.2 फीसदी की गिरावट आई है। यह आंकड़ा सुस्ती की ओर इशारा कर रहा है। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि वर्ष 2016-17 का केंद्रीय बजट को लेकर संभावित वैश्विक स्थिति को भ्ीा ध्याोन में रखना होगा। चीन की अर्थ व्य2वस्थास को भी ध्याान में रखकर भारत को अपनी नीति बनानी पर सकती है। आज के समय में वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर नहीं है। चीन की मुद्रा के क्रमिक अवमूल्यन, हमारी प्रतिस्पर्द्धा के आगे घटने और अमेरिकी ब्याज दर में क्रमिक बढ़ोतरी से वैश्विक पूंजी के पुनः अमेरिका की तरफ खिसकने के प्रति भारत को विशेष रूप से जागरूक रहना होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था इस वक्तू दोहरी मार झेल रही है। उत्पादकों के लिए मूल्य घट रहे हैं तो उपभोक्ताओं को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। उदाहरण के लिए कृषि क्षेत्र को लिया जा सकता है। यहां ज्यादातर खाद्यान्न वस्तुओं के उपभोक्ता मूल्यों में बढ़ोतरी दिखाई देती है लेकिन व्ययवसायी और किसानों की आय घटती जा रही है। जबकि आम आदमी खाद्य वस्तुओं में महंगाई की मार झेल रहा है। रिजर्व बैंक गर्वनर रघुराम राजन ने भी इस ओर संकेत कर चुके है कि वैश्विक रूप से वस्तुओं की कीमतों में अपस्फीति का असर भारत में उत्पादकों के लिए घटती कीमत के रूप में दिख रहा है। खादय पदार्थ की मंहगाई भी सरकार के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। हालांकि, कुल मुद्रा र्स्फी ति दी में कमी आई है लेकिन खादय पदार्थों के मूल्य आम जन को परेशान कर रहा है। खाद्य एवं दैनिक इस्तेमाल वाले खाद्य जिंसों की बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाये जाने चाहिये। आवश्यक जिंसों के सटोरिया वायदा कारोबार को प्रतिबंधित करने के साथ जमाखोरी को रोकना चाहिये तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सुदृढ़ीकरण एवं सार्वभौमिकरण किया जाना चाहिये। इस बात की भी संभावना है कि अर्थव्यवस्था में निवेश का माहौल बनाने व घरेलू मांग बढ़ाने के साथ ही आगामी बजट का फोकस गरीबों और नौजवानों पर होगा। इसके लिए स्वच्छ भारत, डिजिटल इंडिया और ग्रामीण आवास जैसे कार्यक्रमों के बजट में खासी वृद्धि हो सकती है। कुल योजनागत आवंटन में 10 से 15 प्रतिशत बढ़ोतरी की जा सकती है। एक तरफ सरकार की रणनीति मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों को ध्यान में रखते हुए निवेश को प्रोत्साहित करने की है। साथ ही, केंद्र के पास उपलब्धम वित्तीय संसाधनों को न्यायसंगत तरीके से गांव और शहर के गरीबों के लिए आवंटित करना है। पिछली बार की तरह इस बार भी इस बात की संभावना है कि इस बजट में भी जेटली डायरेक्ट टैक्सों के सुधार पर ध्यान देंगे। इसका फायदा सभी को होगा। इनकम टैक्स की दरों में कमी आने की इससे पूरी संभावना है। इसके अतिरिक्त देश में राजमार्गों का जाल बिछाया जाने को लेकर भी जेटली इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी परियोजनाओं के लिए भारी राशि का ऐलान करेंगे। भारत सरकार खाली पड़ी सरकारी जमीन को लीज पर दे सकती है। हर, बार कि तरह इस बार भी तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ने की संभावना है। पीएसयू बैंकों की स्थिति को देखते हुए संभावना है कि सरकार बैंकों के शेयर बेचने की भी घोषणा कर दें। सब्सिडी, जरूरत मंद को ही मिले इसे लेकर भी सरकार घोषणा कर सकती है। सरकार के लिए असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ सुनिश्चित कराना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। पिछले दिनों वित्त मंत्री भी इस बात को कह चुके है। संभव है कि इस बार के बजट के दौरान इस क्षेत्र के लिए विशेष रूप से कोई बडी घोषण हो सके। एक कार्यक्रम में श्री जेटली कह चुके है कि निर्माण क्षेत्र के श्रमिकों, पलायन करके आए श्रमिकों व आंगनबाड़ी कार्यकर्ता जैसी विभिन्न योजनाओं के स्वयंसेवकों को स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा लाभ सुनिश्चित करना मौजूदा सरकार के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकताओं में से एक है। उद्योग संघ एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एसोचैम) ने सरकार से आग्रह किया कि दीर्घावधि बचत पर कटौती की सीमा (कर मुक्त बचत की सीमा) वर्तमान 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 2.5 लाख रुपये की जाए। इससे मांग बढ़ेगी और उससे आर्थिक विकास की गति बढ़ेगी। एसोचैम ने आवासीय ऋण के ब्याज पर कटौती वर्तमान दो लाख रुपये से बढ़ाकर तीन लाख रुपये करने और मूल धन के चुकता पर भी कटौती की सीमा वर्तमान एक लाख रुपये से बढ़ाकर तीन लाख रुपये करने का वित्तू मंत्रालय से अनुरोध किया गया है। वेतनभोगियों को लाभ पहुंचाने के लिए संघ ने अवकाश नकदीकरण पर छूट (लीव एनकैशमेंट एक्जेंप्शन) की सीमा बढ़ाकर 10 लाख रुपये करने के सुझाव दिए हैं। एसोचैम के सुनील कनोरिया ने कहा कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने तीन लाख रुपये की वर्तमान सीमा 1998 में लागू की थी और इसमें काफी वृद्धि करने की जरूरत है। एसोचैम ने मकान किराया और परिवहन भत्ता पर छूट की सीमा बढ़ाकर प्रति महीने तीन हजार रुपये की जानी चाहिए। एसोचैम ने पेशेवर की तरह वेतनभोगियों के लिए भी मूल्यह्रास भत्ता शुरू करने की सिफारिश की है। मंदी और आर्थिक सुस्ती से जूझ रहे देश के रियल एस्टेफट सेक्ट।र को सरकार की तरफ से आक्सीहजन की जरूरत है। रियल एस्टे्ट सेक्टजर ने आगामी बजट में सरकार से इसे इंडस्ट्री का दर्जा दिए जाने का आग्रह किया है। नेशनल रियल एस्टेसट डेवलपमेंट काउंसिल (नारेडको) ने होम लोन के ब्यााज भुगतान पर मिलने वाली दो लाख रुपए की सीमा को बढ़ाकर तीन लाख किए जाने की भी मांग की है। बड़ी नामी कंपनियां इस क्षेत्र में आएंगी और कॉरपोरेट संस्कृति तथा अनुशासन आएगा। इसका लाभ अर्थव्यवस्था के साथ-साथ ग्राहकों को मिलेगा। एक अनुमान के अनुसार देश में 1.88 करोड़ मकानों की कमी है। हालांकि, सरकार ने 2022 तक देश में दो करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को पाना तभी संभव होगा जब मकान बनाने के लिए जमीन और बैंकों से आसान ऋण उपलब्ध होगा। कृषि क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने भी वित्त मंत्री से मुलाकात कर किसानों को 4 फीसदी ब्याज पर 5 लाख रुपए तक कर्ज उपलब्ध् कराने की मांग की है। साथ ही एमएसपी बढ़ाने, फसल बीमा कवरेज बढ़ाने और स्थायी निर्यात नीति बनाने की भी मांग की। फिलहाल किसान सात फीसदी ब्याज पर 3 लाख रुपए तक का ही कर्ज दिया जा रहा है। लोन समय पर चुकाने पर उन्हें ब्याज में तीन फीसदी की छूट मिलती है। किसान संगठन भारत कृषक समाज (बीकेएस) के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ ने सकरार से कहा है कि एक फीसदी ब्याज दर पर सरकार को दो लाख रुपए तक कर्ज पाने वाले किसानों की संख्या बढ़ाकर दोगुनी करनी चाहिए। फर्टिलाइजर उद्योग की संस्था एफएआई ने बैठक के दौरान कहा कि किसानों को सीधे यूरिया सब्सिडी ट्रांसफर करने की सुविधा शुरू होनी चाहिए। 50000 करोड़ रुपए से ज्यादा बकाया के भुगतान के लिए अगले तीन साल तक बजट में अधिक राशि का आवंटन होना चाहिए। इसके अतिरिक्तक, ट्रेड यूनियनों की तरफ से सरकार से कहा गया है कि व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा पांच लाख रुपए किया जाए। साथ ही, न्यूनतम वेतन बढ़ाकर 18000 रुपए किया जाए। न्यूनतम मासिक पेंशन 3000 रुपए करने की मांग भी वित्तकमंत्री से की गई है। सचदेवा ने बीमार सार्वजनिक उपक्रमों के पुनरद्धार के लिये बजट समर्थन दिये जाने की भी मांग की है। उन्होंने आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं की मूल्य वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिये प्रभावी कदम उठाने की भी मांग की है।
Tuesday, April 12, 2016
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