नई दिल्ली,आकाश द्विवेदी। देश की राजधानी दिल्ली में हमेशा
पर्यावरण संरक्षण पर्यावरण बचाव तथा पर्यावरण से सम्बंधित विभिन्न मुद्दों पर अकसर
चर्चा होती है,लेकिन यह चर्चा केवल कागजों तक ही सीमित होकर
रह जाती है। एक समय था जब दिल्ली के खेतो में जहां पहले कभी फसलें लहलहाती थीं
वहीं, अब शहर के विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद खेत काफी सिमट
गये हैं। दिल्ली शहर में आबादी के साथ मकान भी बढ़ रहे हैं, लेकिन
कृषि योग्य भूमि खत्म होती जा रही है।
सरकारी एजेंसियों लोगों
को आवास मुहैया कराने में नाकाम साबित हो
रही है।जिसके कारण अवैध शहरीकरण दिल्ली में कृषि योग्य भूमि को खत्म करता जा रहा
है।राजधानी से लगातार कृषि योग्य भूमि खत्म हो रही है। अनधिकृत कालोनियों को रोकने
के सरकार के हर प्रयास अब तक नाकाम साबित हो रहे है। अगर इसी हिसाब से दिल्ली में
यह सिलसिला चलता रहा तो कुछ ही सालों में खेत और हरियाली इतिहास के पन्नें बन
जायेगें। दिल्ली सरकार के आंकड़ों को देखा जाये तो कृषि योग्य भूमी गैर कृषि कार्यो
के कारण लगातार खत्म हो रही है।
दिल्ली में आवासीय कॉलोनियों के निर्माण, विकास कार्यो सहित अन्य कामो के
लिये सरकार ने किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया था, लेकिन
सरकार ने जितनी जमीन किसानो से ली, ज्यादा जमीन अनधिकृत
कॉलोनियों का कब्जा हो गया।दिल्ली में ये अवैध कालोनियां लगातार बढ़ रही है।
मालूम हो शीला
सरकार ने दिल्ली की 895 अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करते हुए घोषणा की थी कि
राजधानी में अब और अनधिकृत कॉलोनियों के निर्माण की इजाजत नहीं दी जाएगी,लेकिन
अफसरो के ढुलमुल रवैये के कारण अनधिकृत कॉलोनियां रुकने का नाम नहीं ले रही है।
अगर ऐसा ही चलता रहा ते वह दिन दुरल नहीं जब दिल्ली में खेत केवल इतिहास बन
जायेगें।
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